Logo

बृहस्पतिवार व्रत कथा और महत्व

बृहस्पतिवार व्रत कथा और महत्व

भगवान विष्णु को समर्पित है बृहस्पतिवार का दिन, जानिए बृहस्पतिवार व्रत कथा और महत्व


सातों दिन में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति को समर्पित होता है। इस दिन बृहस्पतिवार व्रत और कथा के पाठ करने का विधान है। कहते हैं जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा करता है और गुरुवार व्रत की कथा कहता और सुनता है, उसकी गरीबी और कष्ट को भगवान विष्णु दूर कर देते हैं। ऐसी मान्यता है कि गुरुवार व्रत करने और कथा के पाठ से जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। तो आइए, इस आर्टिकल में बृहस्पतिवार व्रत कथा को विस्तारपूर्वक जानते हैं।


गुरुवार व्रत कथा


प्राचीन समय की बात है। भारतवर्ष में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा हुआ करता था। वह रोज गरीबों और ब्राह्मणों की सेवा करता था। साथ ही वह प्रतिदिन मंदिर में भगवान के दर्शन हेतु जाता था। हालांकि, यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी। वह ना ही पूजन करती थी और ना ही दान करती थी। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी और दासी महल में अकेली थीं। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु भेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए पहुंच गए और भिक्षा मांगी, तो रानी ने भिक्षा देने से इंकार कर दिया। रानी ने कहा, “हे साधु महाराज, मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं। इस कार्य के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत हैं, अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए, तथा मैं आराम से रह सकूं।” इसपर साधु ने कहा, “हे देवी, तुम तो बड़ी अजीब हो। धन और संतान से कौन दुखी होता है? इसकी तो सभी कामना करते हैं। पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करते हैं। अगर तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ। ऐसे करने से तुम्हारा नाम परलोक में सार्थक होगा और स्वर्ग की प्राप्ति होगी।” परंतु रानी पर साधु के इस उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह बोली, “महाराज, मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं, जिसे मैं अन्य लोगों को दान दूं, जिसे रखने और संभालने में ही मेरा सारा समय नष्ट हो जाए। अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए, तथा मैं आराम से रह सकूं।”

साधु ने उत्तर दिया, “यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो जैसा मैं तुम्हें बताता हूं, तुम वैसा ही करना: बृहस्पतिवार को घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना, राजा से कहना वह बृहस्पतिवार को हजामत बनवाए, भोजन में मांस-मदिरा खाना और कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना। ऐसा करने से सात बृहस्पतिवार में ही तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा।”

इतना कहकर वह साधु वहां से अंतर्धान हो गए। इसके बाद रानी ने वही किया जो साधु ने उसे बताया था। 3 बृहस्पतिवार ही बीते कि उसका समस्त धन नष्ट हो गया और भोजन के लिए भी राजा-रानी तरसने लगे। तब एक दिन राजा ने रानी से कहा कि तुम यहां पर रहो, मैं दूसरे देश में चाकरी के लिए चला जाता हूं। चूंकि, यहां पर मुझे सभी लोग जानते हैं, इसलिए मुझे कोई काम नहीं मिलेगा। ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया। वहां वह जंगल में लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेंचता, इस तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।

इधर, राजा के बिना रानी और दासी दुखी रहने लगीं। किसी दिन भोजन मिलता और किसी दिन जल पीकर ही रह जातीं। एक समय जब रानी और दासियों को सात दिन बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, “हे दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है। तू उसके पास जा, और 5 सेर बेझर मांग कर ले आ, ताकि कुछ समय के लिए थोड़ा-बहुत गुजर-बसर हो जाए।” दासी रानी की बहन के पास गई। उस दिन बृहस्पतिवार का दिन था। रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया। जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई। उसे क्रोध भी आया। दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी। रानी ने कहा कि इसमें उसका कोई कसूर नहीं है। जब बुरे दिन आते हैं, तब कोई सहारा नहीं बनता। यह सब कहकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा। उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, लेकिन मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी। कथा सुनकर और पूजन समाप्त कर वह अपनी बहन के घर गई और कहने लगी, “हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी आई थी, लेकिन जब तक कथा होती है, तब तक ना उठते हैं और ना ही बोलते हैं। इसलिए, मैं कुछ नहीं बोली। बताओ, दासी क्यों आई थी?”

तब रानी बोली, “बहन, हमारे घर अनाज नहीं था।” ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आईं और उसने दासियों समेत 7 दिन तक भूखा रहने की बात भी अपनी बहन को बता दी। तब रानी की बहन बोली, “देखो बहन, बृहस्पति देव सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो। पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ, परंतु बहन के आग्रह करने पर उसने दासी को अंदर भेजा। दासी घर के अंदर गई तो वहां पर उसे एक घड़ा बेझर से भरा मिल गया। उसे बड़ी हैरानी हुई। उसने बाहर आकर रानी को बताया। दासी रानी से कहने लगी, “हे रानी, जब हमें भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं। इसलिए क्यों ना इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, तो हम भी व्रत कर सकेंगे।” दासी के कहने पर रानी ने अपनी बहन से बृहस्पति व्रत के बारे में पूछा।

तब उसकी बहन ने बताया, “बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल, गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं और कथा सुनना शुभ होता है। उस दिन एक ही समय भोजन किया जाता है और भोजन में पीले खाद्य पदार्थ का सेवन जरूर किया जाता है। इससे गुरु भगवान प्रसन्न होते हैं। इससे अन्न, पुत्र और धन का वरदान मिलता है।”

तब रानी और दासी दोनों ने निश्चय किया कि बृहस्पति देव भगवान का पूजन जरूर करेंगे। सात रोज बाद जब बृहस्पतिवार आया तो उन्होंने व्रत रखा। घुड़साल में जाकर चना और गुड़ बीन लाईं तथा उसकी दाल से केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया। अब पीला भोजन कहां से आए? दोनों बड़ी दुखी हुईं। परंतु, उन्होंने व्रत किया था, इसलिए बृहस्पतिदेव अनुकूल प्रसन्न हुए। इसलिए, एक साधारण व्यक्ति के रूप में वे दो थालों में पीला भोजन लेकर आए और दासी को देकर बोले, “हे दासी, यह भोजन तुम्हारे और तुम्हारी रानी के लिए है, इसे तुम दोनों ग्रहण करना।” दासी भोजन पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उसने रानी से भोजन करने हेतु बुलाया। परंतु, रानी को भोजन आने के बारे में कुछ भी नहीं पता था, इसलिए उसने कहा, “जा, तू ही भोजन कर। क्योंकि, तू व्यर्थ में हमारी हंसी उड़ाती है।” तब दासी ने कहा, “एक व्यक्ति भोजन दे गया है।” तब रानी ने कहा, “वह व्यक्ति तेरे लिए ही भोजन दे गया है, तू ही भोजन कर ले।” तब दासी ने बताया, “वह व्यक्ति हम दोनों के लिए दो थालों में सुंदर पीला भोजन दे गया है।” यह सुनकर रानी बहुत प्रसन्न हुई और दोनों ने बृहस्पति देव को नमस्कार कर भोजन ग्रहण किया।

उसके बाद से वे प्रत्येक बृहस्पतिवार को गुरु भगवान का व्रत और पूजन करने लगीं। बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास धन हो गया। लेकिन, रानी फिर पहले की तरह आलस्य करने लगी। तब दासी बोली, “देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन के रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया। अब भगवान की कृपा से फिर से धन मिला है तो फिर तुम्हें आलस्य हो रहा है।”

उसने आगे कहा, “बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है। इसलिए, हमें दान-पुण्य करना अवश्य करना चाहिए। इससे, तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा।” दासी की बात मानकर रानी शुभ कर्म करने लगी। और उसका यश बढ़ने लगा। एक दिन रानी और दासी आपस में विचार करने लगीं कि न जाने राजा किस दशा में होंगे, उनकी कोई खबर भी नहीं है। उन्होंने श्रद्धापूर्वक बृहस्पति भगवान से प्रार्थना की कि राजा जहां कहीं भी हो, शीघ्र घर वापस आ जाएं।

उसी रात्रि को बृहस्पति देव ने राजा को स्वप्न में कहा, “हे राजा, उठ, तेरी रानी तुझको याद करती है और अपने देश को लौट जा।” राजा सुबह उठा और जंगल से लकड़ी काटने के लिए जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल से गुजरते हुए विचार करने लगा, “रानी की गलती से मुझे कितने दुख भोगने पड़े। राजपाट छोड़कर जंगल में आकर निवास करना पड़ा और जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचकर गुजारा करना पड़ा।” अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा। 

उसी समय राजा के पास बृहस्पति देव साधु के वेष में आकर बोले, “हे लकड़हारे, तुम इस सुनसान जंगल में किस चिंता में बैठे हो, मुझे बताओ।” यह सुन राजा के नेत्रों में जल भर आया। साधु की वंदना कर राजा ने अपनी संपूर्ण कहानी सुना दी। महात्मा बोले, “हे राजा, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव के प्रति अपराध किया था, जिसके कारण तुम्हारी यह दशा हुई। अब तुम चिंता मत करो, भगवान तुम्हें पहले से अधिक धन देंगे। देखो, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पतिवार का व्रत शुरू कर दिया है। इसलिए, अब भगवान तुम्हारी सब कामनाओं को पूर्ण करेंगे।” साधु की बात सुनकर राजा बोला, “लकड़ी बेचकर तो इतना पैसा नहीं बचता, जिससे भोजन के उपरांत कुछ बच सकूं। मैंने रात्रि में अपनी रानी को व्याकुल देखा है। मेरे पास कोई साधन नहीं, जिससे उसका समाचार जान सकूं।” तब साधु ने कहा, “हे राजा, मन में बृहस्पति भगवान के पूजन-व्रत का निश्चय करो। वे स्वयं तुम्हारे लिए कोई राह बना देंगे। बृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियां लेकर शहर में जाना। उस दिन तुम्हें दोगुना धन मिलेगा, जिससे तुम भली-भांति भोजन कर लोगे और बृहस्पति देव की पूजा का सामान भी आ जाएगा।” राजा ने ऐसा ही किया और उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति हुई। इस प्रकार जो भी बृहस्पतिवार का व्रत करता है और यह कथा पढ़ता या सुनता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


........................................................................................................
प्रयागराज के सुंदर घाट

प्रयागराज में अगले साल 13 जनवरी से 26 फरवरी से कुंभ मेला का आयोजन होने वाला है। इसके लिए तैयारियां जोरों- शोरों से चल रही है। हिंदू धर्म के मुताबिक कुंभ में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हाथ में कलावा क्यों बांधते हैं?

कलावा, जिसे रक्षा सूत्र भी कहा जाता है, एक पवित्र धागा है जो विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता है। इसे आमतौर पर सूती धागे से बनाया जाता है और इसे लाल, पीला या अन्य शुभ रंगों में रंगा जाता है।

तंत्र साधना के लिए मशहूर है ये अखाड़ा

पंचाग्नि अखाड़ा शैव संप्रदाय के सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक है। इसकी स्थापना 1136 ईस्वी में हुई थी। वर्तमान में इसका मुख्य केंद्र वाराणसी में स्थित है।

इस अखाड़े ने युद्ध में औरंगजेब को हराया

महानिर्वाणी अखाड़ा भारत के प्राचीन और प्रतिष्ठित अखाड़ों में से एक है, जिसका संबंध शैव संप्रदाय से है। अखाड़े का मुख्य केंद्र उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में है। वहीं इसके आश्रम ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबकेश्वर, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में मौजूद है।

यह भी जाने
HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang