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बुधवार व्रत चालीसा

बुधवार व्रत चालीसा

Budhwar ki chalisa: बुधवार के दिन जरूर करें गणेश चालीसा का पाठ, भगवान गणेश पूरी करेंगे हर मनोकामना

हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। ठीक ऐसे ही बुधवार का दिन प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी का होता है। सनातन धर्म में गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता यानी बाधाओं को दूर करने वाला देवता माना गया है। इसलिए बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि जो श्रद्धा और भक्ति से गणपति बप्पा की आराधना करता है, उसके जीवन से दुख-दरिद्रता दूर होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। वहीं, गणेश जी की पूजा करते समय गणेश चालीसा का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है। गणेश चालीसा में भगवान गणेश के स्वरूप, उनके गुणों और उनकी महिमा का सुंदर वर्णन किया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसे पढ़ने से मन को शांति मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

गणेश चालीसा का पाठ करने से पहले भगवान गणेश का विधिपूर्वक पूजन करना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सामने आसन बिछाकर बैठ जाएं। फिर गणेश जी को लाल फूल, चावल (अक्षत्), सिंदूर, यज्ञोपवीत (जनेऊ), दूर्वा (एक खास तरह की घास), मोदक (गणेश जी का प्रिय मिष्ठान), पान का पत्ता, सुपारी, चंदन और रोली आदि अर्पित करें। ये सभी चीजें गणपति बप्पा को बेहद प्रिय हैं।

पूजन के बाद धूप, दीप और गंध जलाकर गणेश जी की आरती करें। इसके बाद पूरे श्रद्धा भाव से गणेश चालीसा का पाठ करें। पाठ करते समय मन को शांत रखें और भगवान गणेश का ध्यान करते रहें। ऐसा कहा जाता है कि अगर नियमित रूप से बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा और चालीसा का पाठ किया जाए तो इससे जीवन में आने वाली छोटी-बड़ी समस्याएं धीरे-धीरे समाप्त होने लगती हैं। साथ ही, इससे परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और समझ बढ़ती है।

श्री गणेश चालीसा

दोहा

जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥

चौपाई

जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥

जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता॥

ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्घारे॥

कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगलकारी॥

एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण, यहि काला॥

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥

अस कहि अन्तर्धान रुप है। पलना पर बालक स्वरुप है॥

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥

कहन लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहाऊ॥

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥

गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी। सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटि चक्र सो गज शिर लाये॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥

चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥

श्री गणेश यह चालीसा। पाठ करै कर ध्यान॥

नित नव मंगल गृह बसै। लहे जगत सन्मान॥

दोहा

सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥

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