आषाढ़ गुप्त नवरात्र का पर्व बहुत ही शुभ माना जाता है। ये देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा के लिए समर्पित है। इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्र की शुरुआत 6 जुलाई 2024 से हो रही है। मान्यता है कि यह समय तंत्र-मंत्र सीखने के लिए बहुत खास माना जाता है, जो भी भक्त इस दौरान सच्चे भाव के साथ मां दुर्गा के इन स्वरुपों की पूजा करते हैं उन्हें सुख और शांति का आर्शीवाद प्राप्त होता है। तंत्र साधना में लीन लोगों के लिए गुप्त नवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। गुप्त नवरात्रि के दौरान मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा की जाती है।
गुप्त नवरात्र की कथा
गुप्त नवरात्र से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय ऋषि श्रृंगी भक्तजनों को दर्शन दे रहे थे। तभी अचानक भीड़ से एक स्त्री निकलकर आई और हाथ जोड़कर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे रहते हैं जिस कारण मैं कोई भी पूजा- पाठ नहीं कर पाती। धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भयू नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती। मेरे पति मांसाहारी है, जुआरी है, लेकिन मैं मां दुर्गा की सेवा करना चाहती हूं, उनकी भक्ति- साधना से अपने पति और परिवार के जीवन को सफल बनाना चाहती हूं। ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि, वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनता परिचित है, लेकिन इसके अलावा भी दो और नवरात्रि होती है। जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। ऋषि ने महिला को बताया कि, प्रकट नवरात्रि में नौं देवियों की पूजा होती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है। अगर इन गुप्त नवरात्रि में कोई भी भक्त माता दुर्गा की साधना करता है, तो मां उसके जीवन को सफल बना देती है। ऋषि श्रृंगी ने आगे कहा कि लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा-पाठ न कर सकने वाली भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की साधना करता है तो उसे जीवन में कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं रहती है। उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्रि की पूजा की। मां उस पर प्रसन्न हुई और उस स्त्री के जीवन में परिवर्तन आने लगा। उसके घर में सुख-शांति आ गई। उसका पति सही मार्ग पर आ गया। गुप्त नवरात्रि में माता की आराधना करने से उसका जीवन खिल उठा।
युधिष्ठिर ने कहा-हे जनार्दन ! आगे अब आप मुझसे भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम और माहात्म्य का वर्णन करिये।
इतनी कथा सुनकर पाण्डुनन्दन ने कहा- भगवन्! अब आप कृपा कर मुझे भाद्र शुक्ल एकादशी के माहात्म्य की कथा सुनाइये और यह भी बतलाइये कि इस एकादशी का देवता कौन है और इसकी पूजा की क्या विधि है?
महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् कृष्ण से पुनः प्रश्न किया कि भगवन् ! अब आप कृपा कर आश्विन कृष्ण एकादशी का माहात्म्य सुनाइये।
युधिष्ठिर ने फिर पूछा-जनार्दन ! अब आप कृपा कर आश्विन शुक्ल एकादशी का नाम और माहात्म्य मुझे सुनाइये। भगवान् कृष्ण बोले राजन् !