चामुंडा, चंडु, चामुंडी, चामुंडेश्वरी और चर्चिका यह सभी नाम सप्त मातृकाओं में से एक देवी पार्वती के चंडी रूप के हैं। मां काली से समानता को लेकर देवी महात्म्य में चामुंडा का स्पष्ट वर्णन है। चामुंडा को भैरव की पत्नी माना जाता है। कहीं-कहीं चामुंडा को यम की अर्द्धांगिनी भी कहा गया है। वह चौंसठ प्रमुख योगिनियों में से एक हैं। चामुंडा शब्द चंदा और मुंड से मिलकर बना है।
चामुंडा कटे हुए सिरों की माला यानी मुंडमाला गले में धारण किए हुए हाथों में डमरू, त्रिशूल, तलवार और पानपात्र लिए हुए विकराल रूप में हैं। माता करंड मुकुट पहने हुए हैं। चामुंडा की सवारी है और माता की तीन आंखें क्रोध से लाल हैं।
ऐसा कहा जाता है कि तांत्रिक क्रियाओं की देवी चामुंडा देवी श्मशान घाटों या पवित्र अंजीर के पेड़ों पर निवास करती हैं। तंत्र क्रिया में देवी की पूजा में पशु बलि और शराब के प्रसाद का उपयोग किया जाता है। चामुंडा को मूल रूप से आदिवासियों की देवी माना गया है जो मध्य भारत के विंध्य पर्वतों के इलाकों के निवासी हैं।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में प्रसिद्ध चामुंडा देवी मंदिर है। यहां एक अन्य मंदिर भी हैं जो चामुंडा नंदिकेश्वर धाम से विख्यात हैं।
गुजरात में चोटिला और पारनेरा की पहाड़ियों पर भी दो अलग-अलग चामुंडा मंदिर हैं।
ओडिशा में कई चामुंडा मंदिर हैं।
मैसूर के चामुंडी पहाड़ी पर स्थित चामुंडेश्वरी मंदिर देशभर में प्रसिद्ध है।
मध्य प्रदेश के देवास का चामुंडा माता मंदिर 300 फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित है जिसे टेकरी कहा जाता है। देवास में चामुंडा माता को छोटी माता तुलजा माता की छोटी बहन के रूप में पूजा जाता है।
एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार जब प्रह्लाद भगवान विष्णु की स्तुति गाने के लिए अपने पिता हिरण्यकश्यप के सामने अड़ गए, तो हिरण्यकश्यप ने भगवान हरि के भक्त प्रह्लाद को आठ दिनों तक यातनाएं दीं।
होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। खुद को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भक्ति से नाराज था।
हिंदू पंचांग के अनुसार होलाष्टक होली से पहले आठ दिनों की एक विशेष अवधि है, जो फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक चलती है। इस अवधि के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन से पहले होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।